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गर्भावस्था के दौरान हर माँ को अपना ध्यान रखना ज़रूरी होता है। इसमें उचित आहार बेहद ज़रूरी है। गर्भावस्था के दौरान शुगर और ब्लड प्रेशर जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को नियंत्रित रखना माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी माना जाता है। गर्भावस्था के दौरान रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि को 'Gestational Diabetes' कहा जाता है। अगर इस स्थिति को नज़रअंदाज़ किया जाए, तो यह गंभीर हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर रक्त शर्करा का स्तर संतुलित रहे, तो गर्भ में शिशु का विकास सही ढंग से होता है। हालाँकि, अगर यह स्तर बढ़ा रहे और इसे नियंत्रित न रखा जाए, तो प्रसव के दौरान माँ के लिए जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं, साथ ही शिशु को भी खतरा हो सकता है।
Gestational Diabetes से ग्रस्त महिलाओं में, शिशु का वज़न अक्सर सामान्य से ज़्यादा होता है। ऐसे में प्राकृतिक प्रसव मुश्किल हो जाता है और सी-सेक्शन का ख़तरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की रिपोर्टों से स्पष्ट है कि ऐसी महिलाओं में भविष्य में टाइप-2 मधुमेह होने की संभावना ज़्यादा होती है। अगर नियमित जाँच और जीवनशैली के नियमों की अनदेखी की जाए, तो यह समस्या और गंभीर रूप ले सकती है।
अनियंत्रित शुगर लेवल कुछ महिलाओं को समय से पहले प्रसव के ख़तरे में डाल देता है। गर्भावस्था के 37वें हफ़्ते से पहले बच्चे को जन्म देने का जोखिम बढ़ जाता है। इससे नवजात शिशु के स्वास्थ्य को ख़तरा हो सकता है। इससे भी गंभीर बात यह है कि अगर Gestational Diabetes का ठीक से प्रबंधन न किया जाए, तो यह मृत जन्म का कारण भी बन सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह जोखिम विशेष रूप से उन महिलाओं में ज़्यादा होता है जो अपने रक्त शर्करा के प्रति लापरवाह होती हैं और अपने स्वास्थ्य का ठीक से ध्यान नहीं रखतीं। वहीं दूसरी ओर, जिन महिलाओं को गर्भावस्था से पहले मधुमेह होता है, उनमें ज़रूरी दवाइयों और जाँचों के कारण जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है।
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